मोदी सरकार को इस बात का धन्यवाद करना होगा कि बहुत शीध्र ही उन्होंने कृषि छेत्र में कालाबाजारी ख़त्म करने का सार्थक प्रयास किया और उसमे पूर्णतया सफल भी रहे। यह कोई मामूली सफलता नहीं है। मैंने अपने सामने देखा है कि किसान किस प्रकार से लाचार होकर यूरिया और डाई (D.A.P.) के लिए दुकानों पर घंटो लाइन में लगता था। कई बार भीड़ के अनियंत्रित हो जाने पर पुलिस द्वारा लाठी चार्ज भी करना पड़ता था।
सीजन आने पर यूरिया और डाई की कमी के चलते और कई बार कालाबाजारी रोकने हेतु उर्वरक की गाड़ियाँ सीधे थानों में मगवाई जाती थीं जहाँ पुलिस की उपस्थिति में किसानो को खाद का वितरण किया जाता था। यह बात ज्यादा पुराणी नहीं है बल्कि केवल तीन साल पहले तक यही स्थिति पूरे उत्तर पश्चिम भारत में थी। मुझे इस बारे में दक्षिण भारत की स्थिति का ज्ञान नहीं है।
किसानो को यूरिया के निर्धारित दाम पर से कम से कम पचास रुपये ज्यादा चुकाने पड़ते थे, डाई (D.A.P.) पर कम से कम तीन सौ से चार सौ रुपये अधिक तक चुकाने पड़ते थे। इसके साथ ही दूकानदार, किसानो को उर्वरकों की कमी का हवाला देकर उन्हें यूरिया और डाई के साथ अन्य गैर जरूरती सामन भी साथ में किसान को खरीदने के लिए विवश करते थे किसान के राजी होने के बाद ही ये सारे उर्वरक दुकानदार द्वारा किसान को उपलब्ध कराये जाते थे। अन्यथा की स्थिति में किसान को जलील करके भगा दिया जाता था। ज्यादातर किसान छोटी जोतों के हैं, अतः उनको खाद / उर्वरक के दूकानदार कुछ भी नहीं समझते थे। जिस प्रकार देसी और कुछ विदेशी शराबों की दूकान वाले ग्राहकों से बेहद भद्दगी से पेश आते हैं उसी प्रकार उर्वरक बेचने वाले दुकानदार चाहे वह सरकारी हों अथवा प्राइवेट किसानो से उसी तरह पेश आते थे। किसान बेचारा मजबूरी में उनसे ही सामान खरीदने को मजबूर होता था, चुकी उर्वरक की बाजार में गिनी चुनी दुकाने होती थी अतः चाँद दुकानदारों का जलवा बरकरार रहता था।
जब खेत में उर्वरक डालने का सीजन शुरू होता था तो यूरिया और डाई (D.A.P.) को अधिक मूल्य पर बेचने के साथ साथ किसानों कई सारे अन्य गैर जरूरी उत्त्पद मजबूरन थमा दिए जाते और किसान बेचारा बेसहारा सा अपनी बात कह भी नहीं पाता था और उन सारे गैर जरूरती सामान को मजबूरन अपने खेत में डालना पड़ता था भले ही उनके लाभ दिखे या न दिखें। यदि लाभ है भी तो चीजों को जबरदस्ती ग्राहक को बेचने का किसी दूकानदार को कोई अधिकार तो नहीं है।
मोदी सरकार आने के बाद से एक तो लगातार दो वर्ष सूखे की स्थिति रही। जिससे खाद का उपयोग भी कम हुआ और खादों के ज्यादा मात्रा में उपलब्ध रहने से ग्राहकों से लूट कम हो गई। पिछले दो वर्षों में हालत यह हो गई कि जो किसान दुकानदारों से खाद के लिए विनती करता था, अब दुकानदार किसानो से विनती करने के साथ साथ कम दाम में खाद बेचने में प्रतिश्पर्धा भी कर रहे हैं।
यह तो स्थति पिछले दो वर्षो की है। पर अब जो स्थिति आने जा रही है उसमे किसान चाहे छोटा ही हो पर कितना भी बड़ा दूकानदार हो उसको किसान के सामने सर झुकाना ही पड़ेगा। क्यूंकि अब कालाबाजारी की सम्भावना समाप्त ही हो गयी है। अब हर उर्वरक की दूकान पर बायोमेट्रिक मशीन लग चुकी है और किसान को अधार कार्ड दिखाने और अंगूठा लगाकर मशीन द्वारा संस्तुति होने पर ही खाद उपलब्ध होगी। जिससे केवल लाइसेंसे धारी दुकानदार और एक नियम के तहत बने मार्ग से ही उर्वरक प्राप्त कर सकेंगे जिससे उर्वरकों की कमी नहीं हो सकती है।
इसमें दूसरी सबसे बहतर बात यह है कि अब हर किसान को स्वतः मशीन द्वारा छपी छपाई (auto generated printed bill) बिल मिलेगा जिसमे उस उर्वरक का मूल्य स्पस्ट रूप से लिखा रहेगा। इस योजना से कोई भी दूकानदार अपनी जिम्मेदारियों से न तो भाग पायगा, उसका स्टॉक भी दिखाई पड़ेगा, और किसान को मूल्य पता रहने से, उर्वरक के लिए ज्यादा दाम भी नहीं लिया जा सकेगा।
सौ प्रतिशत यूरिया नीम लेपित करने से, इसका इस्तेमाल उद्द्योग धंधों में बंद हो चूका है और सबसे जरूरी बात कि जो मिलावटखोर दूध को सफ़ेद करने के लिए यूरिया का इस्तेमाल करते थे, वो अब यूरिया का इस्तेमाल उसमे नहीं कर पाते हैं। क्यूंकि नीम लापित यूरिया के मिलावट से दूध में नीम की दुर्गन्ध आने लगती है तो यह दूध बिक नहीं सकता। अतः स्वास्थ्य के दृष्टि से भी यह बहुत महत्पूर्ण उपलब्धि है। यूरिया नीम कोटेड करने से यूरिया की छमता में भी वृद्धि हो जाती है।
इन सब दृष्टि से यह सारे महत्वपूर्ण कदम मोदी सरकार की ही देन है जिसमे किसानो का भी फायदा है, तमाम कंपनियों को और सरकारी तंत्र को भी बेहद राहत मिली है।