विमुद्रीकरण और किसान
इस बार विमुद्रीकरण के फैसलेके बाद लगभग हर तरह के व्यक्ति ने कुछ न कुछ परेशानी जरूर झेली है. परंतु फिर भी देश के लोग इस सबके बावजूद ख़ुशी ख़ुशी सब परेशानिया झेल गए और झेल रहे हैं इस उम्मीद में कि आने वाला भविष्य अच्छा रहेगा। इस फैसले से किसानों को खासा नुक्सान झेलना पड़ा और इससे किसानों ने भी समाज के विभिन्न गड़बड़ी करने वालों को अपने आँखों के सामने उनकी असलियत उजागर होते हुए देखा।जब किसान अपना सामान (खरीफ की धान की फसल) मंडी लेकर बेचने जाता था तो वहां के व्यापारी किसानों से सौदा करते थे उदाहरण के तौर पर यदि धान का बाजार मूल्य ग्यारह सौ रूपए है तो किसान धान के बदले यदि पुराने नोट स्वीकार करेगा तो उसकी उसे पूरी कीमत मिलेगी और अगर नयी नोट में पैसा चाहिए तो आठ सौ का दाम दिया जायेगा। उसी प्रकार अन्य फसलों के दाम नयी और पुरानी नोटों के अनुसार ही तय किये गए।
जब किसान रबी कि फसलों कि बुवाई करने को चला तो उन्हें बीज और खाद खरीदने कि आवश्यक पड़ी साथ ही साथ खेत कि तैयारी में भी पैसों कि जरूरत पड़ी, चुकी खेत कि तैयारी गांव के ही लोगों के साधनो से कि जाती है जैसे कि ट्रेक्टर इत्यादि, तो उसका पैसा उधर भी हो सकता है। परंतु जब खाद और बीज की आवश्यकता पड़ी तो जहाँ उधार का चलन नहीं है अथवा जहाँ किसान आढ़तिये पर ज्यादा निर्भर नहीं है जैसा कि उत्तर प्रदेश में है, वहां नगदी कि आवश्यकता बहुत ज्यादा थी इसलिए वहां पर किसान को ज्यादा परेशानियों का सामना करना पड़ा।एक ओर जहाँ किसानों कि फसल बाजार में बिक नहीं पा रही थी और जो बिक भी रही थी तो उसका पैसा समय पर नहीं मिल पा रहा था और यदि कोई व्यापारी पैसा तुरंत देने को तैयार होता था तो पुराने नोट, और यदि किसान नए नोटों कि मांग करता था तो उसे फसल के कम मूल्य से भुगतान मिलता था। अतः किसान की फसल भी घाटे से बिकी और दूसरी ओर यदि वो बैंक से पैसा निकलने जाता था कि खाद और बीज खरीद ले तो बैंक से पर्याप्त नगदी न मिलने से उसे उसी बैंक से प्राप्त हुए पैसे से काम चलना पड़ता था।
कृषि कार्य में समय की बहुत महत्ता है यदि किसी फसल कि बुवाई में देरी हुई या पानी लगाने का सही समय निकल गया या खाद और दवाइयां डालने का समय निकल गया तो फसल कि पैदावार पर उसका प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। अतः किसानों ने ज्यादा नगदी न होने कि स्थिति में फसल बोने में देर करने का जोखिम नहीं उठाने का फैसला किया और बहुत सारे किसानों ने नगदी के अभाव में नया बीज नहीं खरीद पाए और घर में रखा हुआ गेहूं ही बीज के रूप में इस्तेमाल करके खेतों में बो दिए।
इस बार सरकार ने
जो ने रबी फसलों कि बुवाई का जो आकड़ा प्रस्तुत किया है वो सही है कि रबी फसलों बुवाई ज्यादा हुई है परंतु यह भी सच है कि गेहूं का ज्यादातर बीज किसानों के घर का ही गेहूं है, जो बीज कि तरह प्रयोग हुआ है। यह सब होने के बावजूद ज्यादातर किसान खुश है क्योंकि किसान को यह भरोसा है कि सरकार ने विमुद्रीकरण का फैसला आम लोगों के हित में लिया है और आने वाले समय में इस फैसले से भ्रस्टाचार पर लगाम लगायी जा सकेगी साथ ही किसान, आम लोग एवं आने वाली पीढियां इस तरह के फैसले से लाभांन्वित होंगी।
अतः तरह तरह के कष्ट झेलने के
बावजूद किसान और आम नागरिक प्रसन्न है और उम्मीद कर रहा है कि उसका और उसकी आने वाली पीढ़ियों का भविष्य सुरखित और उज्जवल होगा।
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