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Wednesday, 30 August 2017

How to tackle Binneal bearing problem of mango



In mango crop the Binneal bearing is a challenging issue in Mango crop. To tackle this issue farmers need to start out some good practices.

1.    The farmers should remove most of the Blossoms/inflorescence from one side of the mango trees, either right side or left side(Thinning of inflorescence). But this needs to be remembered that which side was thinned.

2.       Use of some products such as soil application of Paclabutrazol 3 ml/10 liter of water in month of July. This is also a good option to tackle the problem of Binneal bearing issue in Mango.

The thinning of blossoms is a concept, to maintain the nutrient and energy balance in one side of the tree so that in the next mango season the tree can bear the flower and fruit on the thinned side.
The flowering in plants and trees consumes much of the energy. So thinning conserves energy of the plant. If flowers are thinned then for the next year the enough energy will be present on the thinned side. In current season the flower bearing side exhaust most of the plants energy so in the next year the non – thinned side bears less fruits.

If blossoms/ inflorescence are not thinned then the energy exhausts from whole of the tree during flowering so that next year whole plant/ tree bears less fruits. 


                                                                                          

Saturday, 26 August 2017

Organic Milk (आर्गेनिक दूध)

             Organic Milk  (आर्गेनिक दूध)       

 जिस प्रकार से आर्गेनिक खेती में फसलों का उत्पादन क्रत्रिम रासायनिक उर्वरकों और कृत्रिम जहरीले रासायनिक दवाइयों के बिना किया जाता है उसी प्रकार आर्गेनिक दूध के उत्पादन के लिए ऐसे पशुओं से दूध प्राप्त किया जाता है जिनको चारा, पानी तथा अन्य सभी प्रकार के आहार प्राक्रतिक रूप से दिए जाते हों.

 सामान्यतः आर्गेनिक दूध का स्रोत और उत्पादन पहाड़ी और पठारी छेत्रों पर उपलब्ध पशुओं से किया जाता है. क्यूंकि वहां पर पशु प्राक्रतिक रूप से उपलब्ध घास, चारा व् पानी खाते पीते हैं और देशी नस्ल होने के कारण उन्हें बीमारियाँ भी न के बराबर ही लगती है जिसकी वजह से उनके इलाज के लिए रासायनिक दवाओं का भी प्रयोग नहीं किया जाता. जानवरों के बीमार होने पर पहाड़ और पठार के लोग प्राक्रतिक रूप से और अपनी पारंपरिक रूप से जानकारी के अनुसार उनका इलाज स्वतः ही कर लेते हैं.

इस प्रकार से देशी नस्ल के पहाड़ी जानवरों से आर्गेनिक दूध आसानी से प्राप्त किया जा सकता है. परन्तु आजकल कुछ डेरीयां ऐसी भी खुल गयी हैं जो आर्गेनिक रूप से उपजे चारे और फसल को ही जानवरों को खिलाते है और शुद्ध पानी भी जानवरों को पीने के लिए देते हैं. अतः ऐसी डेरीयों से उत्पादित दूध भी आर्गेनिक दूध कहलाता है.


आर्गेनिक खेती और आर्गेनिक दूध, आर्गेनिक अंडा इत्यादि के उत्पादन करने का मुख्य लक्ष्य लोगों को आज के समय के घातक रासायनिक पदार्थों द्वारा दूषित अन्न व् दुग्ध उत्पादों से बचाया जा सके जिससे लोगों का अच्छा स्वास्थ्य व् दीर्घायु सुनिश्चित हो सके.  

Thursday, 24 August 2017

आर्गेनिक खेती

                               आर्गेनिक खेती

  आर्गनिक खेती का सामान्य आशय यह होता है कि बिना किसी कृत्रिम रासायनिक उर्वरक (Fertilizer) या कृत्रिम रासायनिक कीटनाशक या अन्य कोई कृषि की कृत्रिम रासायनिक दवाई के की  जाने वाली खेती।


ऐसी खेती बेहद मुश्किल और चुनौती पूर्ण होती है क्यूंकि आज के समय में हर तरफ ज्यादा मात्रा में फसल और नयी नयी फसल की किस्मों की वजह से पौधों में और फसलों में बहुत सारे कीटों और बिमारियों का प्रकोप होता है, ऐसे में किसी फार्म या खेत पर बिना किसी रासायनिक दवा (Pesticide) के खेती करना लगभग नामुमकिन सा ही प्रतीत होता है।




पर आर्गनिक खेती करने के कुछ नियम होते हैं जिसे यदि किसान कडाई से पालन करे और अपने खेत के अनुसार कुछ नया प्रयोग करता रहे तो यह संभव भी है। पर पुनः यह बात ध्यान रखने वाली है कि यह बहुत कठिन है। इसी वजह से आर्गनिक खेती के से उत्पादन कम हो जाता है और ऐसे कृषि उत्पादों के दाम भी अधिक होते हैं।


 आजकल आर्गनिक के नाम पर धोखे की संभावनाएं भी ज्यादा हैं। क्यूंकि बड़े पैमाने पर सब्जियां और फल आर्गानिक तरीके से करना बेहद मुश्किल है। इस कारण इस प्रकार के उत्पाद आम तौर अधिक मात्र में भारत में तो नहीं मिल सकते। आर्गनिक कृषि उत्पाद बेचने वाले बहुत सारे लोग गलत दावा भी करते हैं।

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