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Wednesday, 20 September 2017

चन्दन की खेती के लिए सुझाव



उत्तर प्रदेश में किसानो के साथ काम करते हुए एक बात और पक्की हुई कि लगबघ ९० % किसान नयी बात को तुरंत न स्वीकार करने की आदत है। पांच प्रतिशत किसान बातों पर ध्यान देते है और एक प्रत्रिशत सभी कम किसी अच्छी बात पर अमल करते हैं। बाकी जो भी उन्नति या दुर्गति होती है वो आपसी देखा देखी होती है। यदि पडोसी अथवा गावों में कोई किसान सफल हुआ तो उसे लोग चोरी चुपके नक़ल करने की कोशिश करते हैं। समाज में कोई ढकोसला और ढोंग अपनाने में सभी माहिर होते हैं, पर उनके भले की बात बड़ी मुस्किल से वो ग्रहण करने की हालत में होते हैं।



एक दिन डी डी न्यूज़ में गुजरात के एक प्रगतिशील किसान की सच्ची घटना का जिक्र हो रहा था। उस किसान ने चन्दन की खेती से कई करोंडो रुपये कमाए। मैं भी बहुत उत्त्साहित हुआ। मैंने तय किया कि इस बरसात में चन्दन के कुछ पेड़ लगवाने हेतु किसानों को प्रेरित करूंगा।

 पर जब जब में किसानों के पास जाता और बताता की इससे यह फैयदा है, तो कई किसानों को यह संदेह होता था कि शायद इसमें इनका कोई फैयदा है ! जबकी मुझे चन्दन की पौध के लिए इन्टरनेट पर बहुत ढूँढना पड़ा तब जा कर नजदीक में एक चन्दन का पौध सप्प्लाई करने वाला मिला। मेरी मंशा थी की यदि कुछ किसान भी चन्दन का पेड़ अपने घर में लगवाते हैं तो उनके छोटे बच्चे जब तक बड़े होते, तब तक उनकी पढाई या शादी के लिए उनके पास पर्याप्त पैसा होगा। अतः कुछ लोगों का कल्याण तो हो ही जाएगा। जब मैं किसानो से इस बारे में बात चीत करता था तो किसानो के कुछ सामान्य संदेहास्पद सवाल सामने आये जिसपर किसानों ने कुछ विचित्र विचित्र तर्क भी किये। जिनके बारे में जिक्र करना चाहूँगा :

१. क्या उत्तर प्रदेश का वातावरण चन्दन के पेड़ के लिए अनुकूल है ?

 जवाब : जब बार खबर आती है कि चोर फल अफसर के घर से चन्दन के पेड़ चोरी हो गए। यदि चोरी हुए तो जाहिर सी बात है कि पेड़ होंगे और बड़े भी होंगे और महगे भी इसकारण चोरी हुए। तो इसका मतलब यह है की यहाँ का वातावरण में चन्दन का पेड लगाया जा सकता है।

२. यह पौधा कहाँ मिलेगा ? 


 जवाब : चन्दन के पेड़ को इन्टरनेट के माध्यम  से कई नर्सरी से प्राप्त किया जा सकता है। जो नजदीक और भरोसेमंद हो वहां से यह प्राप्त कर सकते हैं।

३. तैयार होने में कितना समय लगता है और कितना दाम मिलता है ? 

 जवाब : इसकी आर्थिक रूप से उम्र १५ साल की होती है और तब लाल चन्दन के एक पेड़ की कीमत लगभग पांच लाख रूपये होती है।

४. पौधा जंगल से लाया था पर सूख गय, लगता है यहाँ का वातावरण अनुकूल नहीं था :

 जवाब : चन्दन का पेड़ एक परजीवी है। अतः इसके साथ दुसरे पौधे जरूर होने चाहिए नहीं तो यह जिन्दा नहीं रहता। अतः इसके आसपास की घास फूस को पूरी तरह नष्ट नहीं करना चाहिए। बाकि पेड़ों के आसपास के खर पतवार साफ़ कर देने चाहिए पर चन्दन के आस पास यह क्रिया शुरुवाती तीन सालों तक नहीं करनी चाहिए। इसका रोपण सामन्यतः मानसून के महीने में करना चाहिए जिससे कि इनमे जिन्दा रहने की सम्भावना  बढ़ जाती है।

५. पौध से पौध की दूरी कितनी रखनी चाहिए ?

 जवाब : इसके पौधे से पौधे की दूरी 45*45*45 सेंटीमीटर रखनी चाहिए।

६. इस पेड़ के लगाने पर सांप तो नहीं आते ? 

 जवाब : यह एक भ्रम ही है।

७. घर के पास लगा सकते हैं ?

 जवाब : बिलकुल।

८. कहीं चोरी न हो जाय ? 

 जवाब : यदि ज्यादा दूर लगा दिया है तो चोरी की सम्भावना बढ़ जाती है , पर जितना संभव हो घर के आस पास या ऐसी जगह पर लगाना चाहिए जहाँ आसानी से देखभाल की जा सके।



९. बाजार कहाँ है ? 

 जवाब : चन्दन बहुत कीमती पेड़ है अतः जिस चीज की कीमत ज्यादा है उसका बड़ा बाजार होगा इसी कारण वह कीमती है। अतः बाजार की चिंता नहीं करनी होती यह बेहद आसानी से अच्छे दामो में बिक जाता है।

Tuesday, 19 September 2017

गावों में मिटटी जांच योजना एक आर्थिक कल्पवृछ




 कल उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने उत्तर प्रदेश के सभी ग्राम पंचायतों में मिटटी की जांच की व्यवस्था की घोषणा की। यह एक अत्यंत दूरदर्शी और सराहनीय कदम है। यह उत्तर प्रदेश के लिए आर्थिक कल्पवृछ साबित हो सकता है। इस निर्णय के काफी सकारात्मक आर्थिक और दूरगामी परिणाम दिखाई पडेंगे।





उत्तर प्रदेश में पहले से ही अनेक योजनाओं के तहत लगभग हर बीसवी न्याय पंचायत में सरकारी कृषि के भवन उपलब्ध हैं। जिनमे योजनाओं के ख़त्म होने के बाद से ताले पड़े हुए हैं। या दुसरे लोग स्थानीय लोगों की मदत से कब्जा जमाए बैठे हैं। इन भवनों का इस्तेमाल मिटटी जांच प्रयोगशालाओ के रूप में किया जा सकता है । चुकी प्रयोगशालाओं को खोलने का लच्य ग्राम पंचायत स्तर पर है अतः मेरे सुझाव में सरकार को किसी भी नए निर्माण में अपना हाथ नहीं डालना चाहिए। सरकार को चाहिए कि गाँव में ही उपलब्ध किसी भी घर के कुछ कमरे किराये पर लेकर प्रयोगशालाएं चलाइ जाएँ जिससे गाँव के कुछ लोगों को किराये के रूप में कुछ धन भी अर्जित होगा और सरकार को नए भवन निर्माण के लिए भारी भरकम रकम खर्च करने से भी मुक्ति मिलेगी।

                                
              चित्र : मिट्टी जांच लैब


आज उत्तर प्रदेश के प्रत्यक न्याय पंचायत में कृषि विशेषज्ञ उपलब्ध हैं उसके साथ ही कृषि विज्ञान केन्द्रों में वैज्ञानिक भी तहसील स्तर पर उपलब्ध हैं। यदि प्रत्यक ग्राम पंचायतों में एक मिटटी जांच की प्रयोगशाला खोली जायेगी तो न्याय पंचायत स्तर के कृषि कर्मियों और विशेषज्ञ को वहां बैठने की सुनिश्चित जगह मिलेगी। अतः मिटटी की जांच कराने आपने वाला किसान कृषि विशेषज्ञ से भी खेती के विषय में आसानी से राय भी प्राप्त कर सकेगा।




आज की स्थिति यह है कि मिटटी की प्रयोगशालाएं जयादातर जिले स्तर पर हैं और कृषि विशेषज्ञ केवल ब्लाको पर ही उपलब्ध होते हैं। यदि कृषि विशेषज्ञ गाँव में जाते भी हैं तो कभी किसान नहीं मिलता और कभी विशेषज्ञ जिसके घर बैठा होता है उसके घर से दुसरे कुछ लोगों की दुश्मनी होती है जिससे अन्य किसान वहां आते ही नहीं। अतः मिटटी की प्रयोगशालाएं बनने से छोटी छोटी समस्याएं खुद ब खुद दूर हो सकती हैं और किसान मिटटी की जांच के लिए सुलभता से अपने ही ग्राम में जांच और सलाह भी प्राप्त कर सकता है।







यह योजना कम खर्चीली परन्तु बहुत यह बेहद महत्वपूर्ण निवेश होगा। इससे सौ प्रतिशत तय है कि उत्तर प्रदेश में किसानो की आमदनी आने वाले तीन सालों में ही दुगनी हो जायेगी। जो काम मोदी सरकार नहीं कर सके वह एक झटके में योगी सरकार करने जा रही है और उत्तर प्रदेश को विकास की नयी उचाइयों पर पहुँचने से कोई नहीं रोक सकता है।









मिटटी की जाँच इसलिए आवश्यक है कि पिछले कई दशकों से रासायनिक खादों के धड़ल्ले से प्रयोग होने के कारण जमीन में बहुत बड़ा परिवर्तन आ चुका है। अब जमीन की उत्त्पदाकता कम हो चुकी है। अतः मिटटी की जांच से यह पता चलेगा कि किस मिटटी में किस तत्व की अधिकता है और किस चीज की कमी और यह भी पता चलेगा कि क्या सामान्य है। इसके आधार पर किसान उर्वरकों (fertilizers) का संतुलित प्रयोग कर सकेंगे जिससे कि मिटटी का स्वस्थ अच्छा होगा और फसलों की उत्त्पदाकता बढ़ेगी और किसान तथा देश दोनों को बहुत बड़ा लाभ होगा।





उत्तर प्रदेश की मिटटी पहले से ही बहुत उपजाऊ है, यहाँ पानी भी प्रचुर मात्र में है। यदि सरकार साथ दे जैसा कि दिखाई पड़ रहा है तो यहाँ की गरीबी मिटने में बहुत ज्यादा वक्त नहीं लगेगा। यह मिटटी कि जांच लैब, एक कृषि परामर्श केंद्र के रूप में विकसित हो जाएगी जिससे किसानों को हर तरह के कृषि पर आधारित उद्द्योगों का भी ज्ञान मिलेगा।





आज मिटटी की जांच जिले स्तर और कहीं कहीं यह तहसील स्तर पर होने से प्रयोगशालाओं पर बहुत अधिक दबाव होता है। जिससे कि बहुत सारी मिटटी की जांचे ठीक ढंग से नही हो पाती ऐसे में मिटटी की जांच का फैयदा ही क्या ? ग्राम पंचायत स्तर पर यह सुविधा होने से मिटटी की जांच किसान के सामने हो जायेगी जिससे कि मिटटी की स्वास्थ्य की सटीक जानकारी प्राप्त हो सकेगी।

     
                             चित्र : मिटटी जांच किट





आज बहुत सारे देशों में मिटटी जांच हेतु जांच किट भी उपलब्ध हैं जिससे त्वरित जांच सुनिशिचत हो जाती है और समय तथा पैसा दोनों की बचत होती है। अतः सरकार को इस प्रकार की सफल मिटटी जांच किट्स का इंतजाम करना चाहिए, जिससे खर्च में कटौती की जा सके। इस प्रकार जांच किट्स की मदत से सामन्य पढ़े लिखे ग्रामों के युवा भी जांच आसानी से कर पायेंगे और केवल कृषि में इन्टर पास लड़के या बी. ए./ बी यस. सी. पास बेरोजगार भी रोजगार पा सकेंगे। और जांच भी आसानी से बिना किसी विशेषज्ञता के आधार पर कर सकेंगे। आज प्रदेश में 52 हजार ग्राम पंचायतें हैं। यदि संविदा पर भी नौकरी दी जाय तो 52 हजार ग्रामीण छेत्रों में रोजगार सर्जित होंगे और लगभग इतने ही ग्रामीणों के घरों को किराये प्राप्त होंगे। यह एक बेहद महत्वपूर्ण और दूरदर्शी सोच और कदम है जो प्रदेश की आर्थिक तरक्की में मदत्गार होगा।

Thursday, 7 September 2017

ट्रेक्टर और पॉवर टिलर की तुलना (tractor vs power tiller)


उत्तर प्रदेश एक बहुत बड़ा राज्य है जनसँख्या लगभग 22 करोड़ होने की वहज से यहं पर जमीनो की जोतें बहुत छोटी हैं यहाँ के ज्यादातर किसान खेती हेतु ट्रेक्टर का इस्तेमाल धड़ल्ले से करते हैंट्रक्टर के इस्तेमाल धड़ल्ले से बढ़ने के पीछे की वजह यह रही कि सन 1995 के आसपास किराये पर ट्रेक्टर का चलन बढ़ा, बहुत सारे किसान जिनके पास ट्रेक्टर खरीदने की पूँजी थी उन सभी ने इस लालच में ट्रेक्टर खरीदा कि खेती के आलावा घर के किसी सदस्य या किसी ड्राईवर को ट्रेक्टर पर लगाकर उसको किराये पर चलवाकर पैसे कमायेंगे


         चित्र : पावर टिलर (Power tiller)


 पर धीरे धीरे ऐसा हो गया कि एक ही गाँव में कई ट्रेक्टर हो गए और उन सभी में किराये पर चलने के लिए आपस में प्रतिश्पर्धा (competition) शुरू हो गया कुछ ट्रेक्टर  मालिक किसानों ने उधार पर काम करना शुरू कर दिया जिससे किराये पर ट्रेक्टर चलवाने वालों की बाजार ठंढी पड़ गयी अब धीरे धीरे ट्रक्टर को किराये पर चलवाने का नुक्सान सामने लगा

ज्यादातर किसान ट्रेक्टर खरीदने हेतु बैंकों से ऋण लेते हैं और किराये पर चलाना उनका मुख्य उद्देश्य होता है किराये पर उधार के चलने से, किसान ट्रेक्टर की मासिक क़िस्त नहीं निकलने की स्थिति में होता है और यदि यही स्थिति लम्बे समय तक रहने से किसान अपनी जमीन बेचने को मजबूर हो जाता है किसान में आपस में प्रतिश्पर्धा होने से, कोई भी छोटा ट्रेक्टर नहीं लेना चाहता हर किसान चाहता है कि उसके पास पडोसी से बड़ा ट्रेक्टर हो भले ही उसके पास जमीन पांच बीघा ही हो


किसान को अपनी जरूरतों के अनुसार ही कोई भी कृषि की मशीन या उपकरण खरीदने चहिये पर उत्तर प्रदेश में यह अपने अनुसार नहीं बल्कि दूसरों के अनुसार होता है। यहाँ पर अगर पडोसी के पास २ हार्श पावर का ट्रेक्टर है तो बगल वाला ३ हार्श पावर का ट्रेक्टर खरीदने की सोचेगा उसको अपनी वित्तीय स्थिति की चिंता नहीं होती बल्कि उसे दूसरों को नीचा दिखने की चिंता और प्रतिश्पर्धा होती है इस चक्कर में लोग कैसे भी करके ट्रेक्टर खरीद लेते हैं, और किराये पर चलाने लगते हैं पर किराए का बहुत सारा पैसा वापस नहीं आता है और अंत में जब यह स्थिति आती है कि बैंक ट्रक्टर खींच ले जायेगा तो जमीन बेचना ही आखिरी विकल्प बचता है

 
जमीन छोटी होने की वजह से बहुत कम ही किसानो को ट्रेक्टर की आवश्यकता है यदि किसी किसान के पास बीस बीघा खेती है तो उसके लिए पावर टिलर बहुत ही पर्याप्त है पावर टिलर की कीमत लगभग 1.5 लाख ही होती है जबकि ट्रेक्टर की शुरुवाती कीमत ही तीन लाख रूपये होती हैवहीँ पॉवर टिलर में तेल की खपत भी कम होती है और उसे एक ही व्यक्ति इस्तेमाल कर सकता है. ज्यादा लोगों  की उसमे आवश्यकता भी नहीं है पॉवर टिलर में छोटी ट्राली भी फिट हो सकती है जिससे कि बीस बीघा के किसान के लिए पावर टिलर की ट्राली पर्याप्त है
पावर टिलर के इस्तेमाल से खरपतवार नियंत्रण भी असानी से किया जा सकता है और खरपतवार नियंत्रद के लिए इस्तेमाल करने वाले खरपतवार नाशी रसायन के इस्तेमाल को बंद किया जा सकता है यह सारे कार्य ट्रेक्टर नहीं कर सकता है अतः पावर टिलर ट्रेक्टर से कहीं बेहतर है. मैंने दक्षिण भारत में देखा है जो बहुत बड़े किसान भी हैं वो लोग भी पवेर टिलर जरूर रखते है क्यूंकि जो काम ट्रेक्टर नहीं कर सकता वह पवेर टिलर कर सकता है। 

यह जान कर और देख कर बहुत ख़ुशी हुई कि बाराबंकी में किसान पॉवर टिलर का इस्तेमाल धड़ल्ले से करते हैं और उसे किराये पर भी खूब चलते हैं पॉवर टिलर छोटा होने से उसका इस्तेमाल बहुत सारी फसलों में होता है और वह किराये पर पूरे साल बुक रहते हैं ऐसे में जो किसान पावर टिलर को किसानो को किराए पर देते हैं उनको मुनाफा अधिक और पूरे साल होता रहता है। वही ट्रेक्टर केवल बड़े कामो में इस्तेमाल होने की वजह से उनका काम केवल मुख्य मुख्य सीजन में ही होता है

 अतः पॉवर टिलर दाम में कम होने के साथ साथ पैसा भी अधिक कमाकर देता है, लागत तथा खर्च भी कम आता है और कम् अवधि में कई तरह के काम कर पाता है अतः उत्तर प्रदेश जैसे राज्य में जहाँ जमीने छोटी हैं वहां के किसानो को पॉवर टिलर पर अपेछा कृत ज्यादा भरोसा करना चाहिए यह उनकी वित्तीय सेहत के लिए बेहद अच्छा है और किसान को छोटी छोटी प्रतिश्पर्धा और ईर्ष्या का त्याग कर अपने वित्त का चिंतन करना चाहिए


मेरी सलाह में उत्तर प्रदेश में जिन किसानो के पास बीस से पचीस बीघे की खेती है उनको पोवेर्तिल्लेर का इस्तेमाल करना चाहिए। 

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