उत्तर प्रदेश एक बहुत बड़ा
राज्य है। जनसँख्या लगभग 22 करोड़ होने की वहज से यहं पर जमीनो की जोतें बहुत छोटी हैं। यहाँ के ज्यादातर किसान खेती हेतु ट्रेक्टर का इस्तेमाल धड़ल्ले से करते हैं।ट्रक्टर के इस्तेमाल धड़ल्ले से बढ़ने के पीछे की वजह यह रही कि सन 1995 के आसपास
किराये पर ट्रेक्टर का चलन बढ़ा, बहुत सारे किसान जिनके पास ट्रेक्टर खरीदने की
पूँजी थी उन सभी ने इस लालच में ट्रेक्टर खरीदा कि खेती के आलावा घर के किसी सदस्य
या किसी ड्राईवर को ट्रेक्टर पर लगाकर उसको किराये पर चलवाकर पैसे कमायेंगे।
चित्र : पावर टिलर (Power tiller)
पर
धीरे धीरे ऐसा हो गया कि एक ही गाँव में कई ट्रेक्टर हो गए और उन सभी में किराये
पर चलने के लिए आपस में प्रतिश्पर्धा (competition) शुरू हो गया। कुछ ट्रेक्टर मालिक किसानों ने उधार पर काम करना शुरू कर
दिया। जिससे किराये पर ट्रेक्टर चलवाने वालों की बाजार ठंढी पड़ गयी। अब धीरे
धीरे ट्रक्टर को किराये पर चलवाने का नुक्सान सामने लगा ।
ज्यादातर किसान ट्रेक्टर
खरीदने हेतु बैंकों से ऋण लेते हैं और किराये पर चलाना उनका मुख्य उद्देश्य होता
है। किराये पर उधार के चलने से, किसान ट्रेक्टर की मासिक क़िस्त नहीं निकलने की
स्थिति में होता है और यदि यही स्थिति लम्बे समय तक रहने से किसान अपनी जमीन बेचने
को मजबूर हो जाता है। किसान में आपस में प्रतिश्पर्धा होने से, कोई भी छोटा
ट्रेक्टर नहीं लेना चाहता। हर किसान चाहता है कि उसके पास पडोसी से बड़ा ट्रेक्टर
हो भले ही उसके पास जमीन पांच बीघा ही हो ।
किसान को अपनी जरूरतों के
अनुसार ही कोई भी कृषि की मशीन या उपकरण खरीदने चहिये। पर उत्तर प्रदेश में यह
अपने अनुसार नहीं बल्कि दूसरों के अनुसार होता है। यहाँ पर अगर पडोसी के पास २
हार्श पावर का ट्रेक्टर है तो बगल वाला ३ हार्श पावर का ट्रेक्टर खरीदने की
सोचेगा। उसको अपनी वित्तीय स्थिति की चिंता नहीं होती बल्कि उसे दूसरों को नीचा
दिखने की चिंता और प्रतिश्पर्धा होती है। इस चक्कर में लोग कैसे भी करके ट्रेक्टर
खरीद लेते हैं, और किराये पर चलाने लगते हैं। पर किराए का बहुत सारा पैसा वापस
नहीं आता है और अंत में जब यह स्थिति आती है कि बैंक ट्रक्टर खींच ले जायेगा तो जमीन बेचना ही आखिरी विकल्प बचता है ।
जमीन छोटी होने की वजह से
बहुत कम ही किसानो को ट्रेक्टर की आवश्यकता है। यदि किसी किसान के पास बीस बीघा
खेती है तो उसके लिए पावर टिलर बहुत ही पर्याप्त है। पावर टिलर की कीमत लगभग 1.5 लाख ही होती है जबकि
ट्रेक्टर की शुरुवाती कीमत ही तीन लाख रूपये होती है।वहीँ पॉवर टिलर में तेल की
खपत भी कम होती है और उसे एक ही व्यक्ति इस्तेमाल कर सकता है. ज्यादा लोगों की उसमे आवश्यकता भी नहीं है। पॉवर टिलर में
छोटी ट्राली भी फिट हो सकती है जिससे कि बीस बीघा के किसान के लिए पावर टिलर की
ट्राली पर्याप्त है।
पावर टिलर के इस्तेमाल से खरपतवार नियंत्रण भी असानी से किया
जा सकता है और खरपतवार नियंत्रद के लिए इस्तेमाल करने वाले खरपतवार नाशी रसायन के
इस्तेमाल को बंद किया जा सकता है। यह सारे कार्य ट्रेक्टर नहीं कर सकता है अतः
पावर टिलर ट्रेक्टर से कहीं बेहतर है. मैंने दक्षिण भारत में देखा है जो बहुत बड़े
किसान भी हैं वो लोग भी पवेर टिलर जरूर रखते है क्यूंकि जो काम ट्रेक्टर नहीं कर
सकता वह पवेर टिलर कर सकता है ।
यह जान कर और देख कर बहुत
ख़ुशी हुई कि बाराबंकी में किसान पॉवर टिलर का इस्तेमाल धड़ल्ले से करते हैं और उसे
किराये पर भी खूब चलते हैं। पॉवर टिलर छोटा होने से उसका इस्तेमाल बहुत सारी फसलों में होता है और वह किराये पर पूरे साल बुक
रहते हैं। ऐसे में जो किसान पावर टिलर को किसानो को किराए पर देते हैं उनको मुनाफा अधिक और पूरे साल होता रहता है। वही ट्रेक्टर केवल बड़े कामो में इस्तेमाल होने की वजह से उनका काम केवल
मुख्य मुख्य सीजन में ही होता है ।
अतः पॉवर टिलर दाम में कम होने के साथ साथ पैसा
भी अधिक कमाकर देता है, लागत तथा खर्च भी कम आता है और कम् अवधि में कई तरह के काम
कर पाता है। अतः उत्तर प्रदेश जैसे राज्य में जहाँ जमीने छोटी हैं वहां के किसानो
को पॉवर टिलर पर अपेछा कृत ज्यादा भरोसा करना चाहिए यह उनकी वित्तीय सेहत के लिए
बेहद अच्छा है और किसान को छोटी छोटी प्रतिश्पर्धा और ईर्ष्या का त्याग कर अपने
वित्त का चिंतन करना चाहिए ।
मेरी सलाह में उत्तर प्रदेश में
जिन किसानो के पास बीस से पचीस बीघे की खेती है उनको पोवेर्तिल्लेर का इस्तेमाल
करना चाहिए।
Nice info here !
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