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Saturday, 10 June 2017

विंड ब्रेक और शेल्टर बेल्ट (Wind break and shelter belt)

                  Wind break and shelter belt

कृषि कार्यों में तेज हवाएं कई बार समस्या का कारण बनती है। तेज हवाओं से खेत में खड़ी फसलें पूरी तरह नष्ट हो जाती हैं तेज हवाओं के मौसम में अक्सर पेड़ों से अपरिपक्कव फल गिर जाते जिससे किसानो को बहुत आर्थिक नुक्सान होता है जब तेज हवाएं बहुत बड़े छेत्र में में कहर ढाती हैं उससे बहुत बड़े हिस्से की कई फसलें नष्ट हो जाती है जिससे किसानो को तो नुक्सान होता ही है पर साथ में उन फसलों के नष्ट होने के कारण उनके मूल्य बहुत ज्यादा बढ़ जाते हैं जिससे आम लोगों को भी महगाई से सामना करना पड़ता है तेज हवाओं से कई अनाज और दलहन के साथ साथ फलों की फसलों पर सबसे ज्यादा नुक्सान होता है जैसे धान, गेहू, मक्का, बाजरा, अरहर, आम इत्यादि अतः तेज हवाओं से बचाव एक बड़ी चुनौती होती है इसका सामना करने के लिए हमें ऐसी संरचना का निर्माण करना पड़ता है जो की तेज आने वाली हवाओं के प्रवाह को कम कर दें
 इसके लिए दो तरह की संरचना का निर्माण किया जाता है एक में तो पेड़ों को इस प्रकार लगाया जाता है जिससे कि वो हवाओं की रफ़्तार को रोकें और दूसरी संरचना का निर्माण सीमेंट (cement / concrete)  से किया जाता है सीमेंट की बड़ी सी दीवार फार्म/ खेत के चारो और बनाने से हवाओं की रफ़्तार को कम किया जा सकता है   
विंड ब्रेक (wind break) : तेज हवाओं की रफ़्तार को कम करने के लिए जब खेत के चारो और अथवा हवा आने वाली तरफ जब सीमेंट (cement / concrete) की दीवार बनायी जाती है तो उसे विंड ब्रेक कहते है अतः यह निर्जीव संरचना होती है
शेल्टर ब्रेक / शेल्टर बेल्ट (shelter break/shelter belt) : तेज हवाओं की रफ़्तार को कम करने के लिए जब खेत के चारो ओर अथवा हवा आने वाली तरफ जब पेड़ों का (सजीव दीवार) इस्तेमाल किया जाता है तो उसे शेल्टर बेल्ट या शेल्टर ब्रेक कहा जाता है
तेज हवाओं के नियंत्रण में दो शब्दों का बार बार इस्तेमाल होता है वो हैं विंड वर्ड साइड (wind ward) और ली वर्ड (Lee ward) साइड जिस ओर से हवा का प्रवाह आता है उसे विंड वर्ड साइड कहा जाता है तथा हवा आने की उलटी दिशा वाली साइड को ली वर्ड साइड कहा जाता है
शेल्टर बेल्ट बनाने के कई मॉडल होते है जिसमे सामान्यतया हवा आने की दिशा में बड़े पेड़ों को लाइन से लगाया जाता है पर अन्य मॉडल में हवा वाली दिशा में (खेत से बाहर की ओर) छोटे पेड़ (shrubs) लगाये जाते हैं फिर छोटी ऊंचाई वाले वृछ और खेत की साइड में सबसे ऊंचाई वाले वृछ लगाये जाते हैं

शेल्टर या विंड ब्रेक्स बनाने से हवा की रफ़्तार खेत की ओर (lee ward) 60 – 80%  कम हो जाती हैवृछ या दीवार की ऊंचाई से विभिन्न दूरी पर हवा की रफ़्तार भिन्न भिन्न होती है हर 300 मीटर पर विंड ब्रेक या शेल्टर बेल्ट्स की दूसरी लाइन बनानी चाहिए

Friday, 9 June 2017

वानकी (Forestry) और कृषि वानकी (Agro forestry)

          Forestry and Agro forestry


वानकी का अर्थ है  वनों को विकसित करना जिनमे वन के लिए पौधों का उत्तपादन, उनका संरछण और उनके उत्त्पदों का उपयोग [शामिल होता है। वानकी का मुख्य उद्देश पर्यावरण का संतुलन बनाना है परन्तु वानकी एक बहुउद्देशीय कार्य है। 
कृषि वानकी, वानकी (Forestry) का वह अंग है जिसमे फसल उत्त्पादन अथवा कृषि के साथ साथ वृक्षारोपण को सम्लित किया जाता है वानकी के अंतर्गत केवल वृक्षारोपण किया जाता है और वन को संरछित किया जाता है तथा वनों द्वारा उत्त्पन्न विभिन्न प्रकार के उत्तपादों का उपयोग किया जाता है। वानकी के अंतर्गत केवल वनों का विकास ही उद्देश होता है जहाँ बड़ी भूमि पर वृक्षारोपण द्वारा बड़ी मात्रा में वन लगाये जाते है। 
कृषि वानकी में वृछ लगाने का उद्देश खेती में विविधता पैदा करना है जिससे कृषि भूमि को ज्यादा से ज्यादा उपयोग में लाया जा सके, कृषि योग्य भूमि का पूरा सदुपयोग किया जा सके और एक निश्चित समय बाद उससे किसानो को आमदनी भी प्राप्त हो सके

कृषि वानकी के अनेक लाभ है जिसमे कुछ नीचे दिए गए हैं:
१. खेतों की खाली जमीन का पूर्ण इस्तेमाल किया जा सकता है जैसे मेढ़ों पर वृक्षारोपण करने से कृषि योग्य भूमि का ज्यादा से ज्यादा उपयोग हो जाता है
२. गहरी जड़ों के पेड़ उगाने से जमीन की गहराई से पोषक तत्व उपर आते हैं इससे मिटटी में पोषकतत्वों का आदान प्रदान (rotation) होता रहता है
३. वातावरण भी शुद्ध रहता है
४. पेड़ों के तैयार होने पर अच्छी खासी अतरिक्त आमदनी हो जाती है
५. घर के इस्तेमाल के लिए इमारती लकड़ी उपलब्ध होती है
६. पेड़ों की गिरने वाली पत्तियां या तथा पेड़ों के अन्य भाग को सड़ाकर खेती के लिए बेहतर खाद तैयार की जा सकती है

वानकी का वर्गीकरण (Classification of Forestry) :

वानकी के विभिन्न उद्देश्य के आधार पर निम्न प्रकार से वर्गीकरण किया गया है -
१. संरछण वानकी (Conservation Forestry) : यहाँ वृक्षारोपण का प्रमुख उद्देश्य भूमि को छरण (erosion) से बचाना, जमीन में जल के स्तर को बढ़ाना इत्यादि
२. व्यवसायिक वानकी (Commercial forestry) : यहाँ वृक्षारोपण का प्रमुख उद्देश्य आमदनी प्राप्त करना होता है
३. सामाजिक वानकी (Social Forestry) :  यहाँ वन लगाने का प्रमुख उद्देश्य समाज के लिए पौधों को लगाना उदाहरण के तौर पर सार्वजनिक जगहों पर इस प्रकार के पेड़ पौधे लगाना जिससे आम नागरिकों को जलने के लिए ईधन के रूप में पेड़ों की शाखाएं, पत्तियां इत्यादि मिल सके
 ४. कृषि वानकी (Agro Forestry): यहाँ वृक्षारोपण का प्रमुख उद्देश्य कृषि योग्य भूमि का ज्यादा से ज्यादा इस्तेमाल करके उससे लाभ अर्जित करना

कृषि वानकी में उपयोग करने वाले पौधों की निम्न खासियत होनी चाहिए :
१. सीधा तना होना चाहिए
२. गहरी जडें होनी चाहिए
३. शाखाएं कम फैलने वाली होनी चाहिए
४. वृक्षारोपण में ऐसे पेड़ों का चयन करना चाहिए जिनकी कीमत बाजार में अच्छी मिले

उत्तर प्रदेश में कृषि वानकी में उपयोग करने के लिये प्रमुख रूप से निम्न पौधों का चयन किया जा सकता है : सागौन, चन्दन, शीशम, साखू, पोपुलर, आम, नीम, जामुन, बबूल, बांस इत्यादि

कुछ पौधों की व्यावसायिक उम्र (Commercial age of forestry trees):


व्यवसायिक उम्र वह मानी जाती है जिस उम्र पर कोई वन का पेड़  (forest tree) मुनाफा देने की स्थिति में पहुँच जाता है
शीशम की व्यवसायिक उम्र पचास साल (50 years)
सागौन की तीस साल (30 years)
साखू की पचास साल (50 years)          

मध्य प्रदेश का किसान आन्दोलन


आज से पहले भी अनेक बार किसानो की फसलों के उचित मूल्य नहीं मिले पर इस प्रकार का हिंसक प्रदर्शन किसानो की तरफ से नहीं किया गया। दर असल भारत की किसान बिरादरी हिंसक नहीं है। जब उसके फसल का उचित मूल्य नहीं मिलता है तब वह दुखी होता है अपना दुखड़ा रोता है फिर भी उम्मीद नहीं छोड़ता और विभिन्न प्रकार की फसल पर जोर आजमाइश करता है आज कई फसलों के मूल्य बाजार में बहुत अच्छे मिल रहे है, लेकिन हर बार किसी भी फसल के दाम कम नहीं मिलते फिर भी किसी फसल की अत्यधिक उत्त्पदाकता और उनके भण्डारण की उचित व्यवस्था के आभाव में किसान को सस्ते में अपना सामान बाजर में बेचना पड़ता है यह साश्वत सत्य है परन्तु इसके लिए सरकार द्वारा न्यूनतम समर्थन मूल्य का निर्धारण किया जाता है जो की इस प्रकार की परिस्थिति से निपटने का एक बेहतर विकल्प होता है मैं पिछले दस वर्षों से पंजाब और हरियाणा के फसलों और मंडियों की स्थिति जानता हूँ वहां पर किसी भी फसल के उत्पाद को न्यूनतम समर्थन मूल्य से कम पर किसान नहीं बेचता न ही किसी व्यापारी न्यूनतम समर्थन मूल्य से कम पर किसान के किसी भी उत्पाद को खरीदता है जब न्यूनतम समर्थन मूल्य से फसलों के मूल्य अधिक प्राप्त होते हैं तब किसान प्रसन्न रहता है
 पर वहीँ उत्तर प्रदेश की बात करें तो यहाँ के किसानो को योगी सरकार से पहले तक न्यूनतम समर्थन मूल्य की जानकारी ही नहीं होती थी पश्चिमी उत्तर प्रदेश में तो मंडी का नेटवर्क ठीक है और किसान मंडी में अपने उत्पाद ले भी जाता है परन्तु पूर्वी उत्तर प्रदेश के ज्यादातर भागों में तो व्यपारी किसान के घर से आकर अनाज खरीद ले जाते है वो जो भी मूल्य देते हैं किसान अपनी फसल को उन्ही व्यापारियों को बेच देता था इसकी मुख्य वजह थी कि यहाँ किसानो के पास मंडी की सुविधायें नहीं हैं और सरकारी खरीद केंद्र कभी खुलते ही नहीं थे और यदि कोई किसान सरकारी खरेद केद्र वाले कर्मचारियों को घूस का लालच देकर अपने कृषि उत्त्पद को बेंच भी देता था तो उसका भी पैसा किसानो को देर में मिलता था
यदि किसानों के फसल का उचित मूल्य दिलवाना है तो फिर किसनों के पैदावार को न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीदना पड़ेगा यह कार्य उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने सरकार में आने के एक महीने के भीतर पूर्ण सफलता के साथ करके दिखाया। आज उत्तर प्रदेश में किसानों को अपने उत्पाद बेचने के लिए चिंता करने की आवश्यकता नहीं है सरकारी क्रय केंद्र दूर दराज के इलाकों तक में पूरे समय तकखुले और सभी इच्छुक किसानो के उत्त्पाद (गेहूं) की खरीद तो सुनिश्चित हुई ही साथ में किसानो के खाते में पैसा भी तीन से पांच दिनों में भुगतान भी सरकार द्वारा कर दिया गया इस नयी व्यवस्था से उत्तर प्रदेश के किसान बेहद खुश है। यदि इसी प्रकार की व्यवस्था अन्य राज भी करने लगें तो फिर किसान आन्दोलन की नौबत नहीं आने पायेगी। 
मध्य प्रदेश के किसान आन्दोलन का सबसे प्रमुख कारण राजनितिक हस्तछेप है। कोई भी किसान अपना गुस्सा प्रगट करने के लिए छोटे मोटे आन्दोलन तो कर सकता है जैसे किसानो ने अपना कृषि उत्पाद सड़कों पर बिखेरा। पर किसान कभी भी हिंसक आन्दोलन नहीं करता जो असली किसान है वो केवल कृषि पर ध्यान केन्द्रित करता है यदि किस फसल से नुकसान होता चला जाता है तो फिर वह दुसरे रास्ते तलासता है जैसे कोई नयी/ अन्य दूसरी फसल की खेती करना, पशुपाल करना, सरकार द्वारा प्रोत्त्साहित की जाने वाली अन्य योजनाओं का लाभ उठाना इत्यादि पर कभी हिंसक प्रदर्शन नहीं करता
 किसान का हिंसक प्रदर्शन केवल किसानो के तथाकथित शुभचिंतक नेता अपना वोट बैंक की राजनीति और निजी स्वार्थ के लिए करवाते हैं उसमे शामिल लोग कहने को तो किसान होते हैं पर स्वयं एक जिम्मेदार शायद ही हों। उनका मकसद कुछ दूसरा होता है वो किसानो की राजनीति करके स्वयं की राजनीति चमकाना चाहते हैं


मध्य प्रदेश के किसान आन्दोलन को कोई भी व्यक्ति साफ़ तौर पर राजनीति से प्रेरित समझ सकता है किसानो ने दूध को भी सड़कों पर फेंका आखिर यह कौन मान सकता है कि आज दूध के दाम कम है और किसान दूध उत्त्पादन में नुक्सान उठा रहा है ?
यदि तथाकथित किसान नेता इतने ही किसानो के शुभ चिन्तक होते तो वह किसानो को उनके उत्त्पादों का बेहतर मूल्य दिलवाने के लिए e NAAM जैसे पोर्टल के इस्तेमाल का लिए प्रोत्साहित करते और कृषि उत्पाद की न्यूनतम समर्थन मूल्य के लिए मुख्य मंत्री और प्रधनमंत्री से मुलकात करके किसानो के हितों की रछा  के लिए विमर्श करते। यह बात कतई स्वीकार नहीं की जा सकती कि यदि कोई मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री, कृषि मंत्री और जरूरत पड़ने पर प्रधानमत्री से मिलता तो ये लोग इन किसान नेताओं की बातों को नजरअंदाज करते। परन्तु कुछ किसान नेताओं के माध्यम से कई अन्य नेताओं ने और खुद कई किसान नेताओं ने भी जानबूझकर अपने निजी राजनितिक लाभ के लिए इस आन्दोलन को हवा दी और आज यह स्थिति उत्त्पन्न हुई। इस आन्दोलन ने कई किसानो की जान ली इसके जिम्मेदार और इस घोर पाप के भागी भी किसानो को भड़काने वाले तत्व ही है


सरकार की विफलता यह रही कि वह उत्तर प्रदेश की तर्ज पर न्यूनतम समर्थन मूल्य पर कृषि उत्त्पादों की खरीद नहीं कर सकी इसके लिए उन्हें क्रय केन्द्रों की शक्ति से निगरानी करनी चाहिए थी इसलिए भविष्य के लिए भी यह आवश्यक है कि किसानो की फसलों की खरीद का न्यूनतम समर्थन मूल्य पर क्रय सुनिश्चित हो और क्रय के पश्चात् सरकार खरीदी गयी फसलों के उत्पाद का इमानदारी से संरछण करे ताकि भण्डारण में फसल उत्त्पादों का नुक्सान न हो साथ ही शरारती तत्वों और तथाकथित बदनीयती किसान नेताओं और इस प्रकार के अन्य नेताओं के खिलाफ भी सख्त कार्यवाही की जाय जिससे उनके द्वारा जनजीवन अस्त व्यस्त करने की उनकी मनसा कभी कामयाब न हो सके

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