आज से पहले भी अनेक बार
किसानो की फसलों के उचित मूल्य नहीं मिले पर इस प्रकार का हिंसक प्रदर्शन किसानो
की तरफ से नहीं किया गया। दर असल भारत की किसान बिरादरी हिंसक नहीं है। जब उसके
फसल का उचित मूल्य नहीं मिलता है तब वह दुखी होता है अपना दुखड़ा रोता है फिर भी
उम्मीद नहीं छोड़ता और विभिन्न प्रकार की फसल पर जोर आजमाइश करता है। आज कई फसलों
के मूल्य बाजार में बहुत अच्छे मिल रहे है, लेकिन हर बार किसी भी फसल के दाम कम
नहीं मिलते। फिर भी किसी फसल की अत्यधिक उत्त्पदाकता और उनके भण्डारण की उचित
व्यवस्था के आभाव में किसान को सस्ते में अपना सामान बाजर में बेचना पड़ता है। यह
साश्वत सत्य है। परन्तु इसके लिए सरकार द्वारा न्यूनतम समर्थन मूल्य का निर्धारण
किया जाता है जो की इस प्रकार की परिस्थिति से निपटने का एक बेहतर विकल्प होता है। मैं पिछले दस वर्षों से पंजाब और हरियाणा के फसलों और मंडियों की स्थिति जानता हूँ
वहां पर किसी भी फसल के उत्पाद को न्यूनतम समर्थन मूल्य से कम पर किसान नहीं बेचता
न ही किसी व्यापारी न्यूनतम समर्थन मूल्य से कम पर किसान के किसी भी उत्पाद को
खरीदता है। जब न्यूनतम समर्थन मूल्य से फसलों के मूल्य अधिक प्राप्त होते हैं तब
किसान प्रसन्न रहता है ।
पर वहीँ उत्तर प्रदेश की बात करें तो यहाँ के किसानो
को योगी सरकार से पहले तक न्यूनतम समर्थन मूल्य की जानकारी ही नहीं होती थी। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में तो मंडी का नेटवर्क ठीक है और किसान मंडी में अपने
उत्पाद ले भी जाता है। परन्तु पूर्वी उत्तर प्रदेश के ज्यादातर भागों में तो व्यपारी
किसान के घर से आकर अनाज खरीद ले जाते है। वो जो भी मूल्य देते हैं किसान अपनी फसल
को उन्ही व्यापारियों को बेच देता था। इसकी मुख्य वजह थी कि यहाँ किसानो के पास
मंडी की सुविधायें नहीं हैं और सरकारी खरीद केंद्र कभी खुलते ही नहीं थे और यदि
कोई किसान सरकारी खरेद केद्र वाले कर्मचारियों को घूस का लालच देकर अपने कृषि
उत्त्पद को बेंच भी देता था तो उसका भी पैसा किसानो को देर में मिलता था ।
यदि किसानों के फसल का उचित
मूल्य दिलवाना है तो फिर किसनों के पैदावार को न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीदना
पड़ेगा। यह कार्य उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने
सरकार में आने के एक महीने के भीतर पूर्ण सफलता के साथ करके दिखाया। आज
उत्तर प्रदेश में किसानों को अपने उत्पाद बेचने के लिए चिंता करने की आवश्यकता
नहीं है। सरकारी क्रय केंद्र दूर दराज के इलाकों तक में पूरे
समय तकखुले और सभी इच्छुक किसानो के उत्त्पाद (गेहूं) की खरीद तो सुनिश्चित हुई ही
साथ में किसानो के खाते में पैसा भी तीन से पांच दिनों में भुगतान भी सरकार द्वारा कर
दिया गया। इस नयी व्यवस्था से उत्तर प्रदेश के किसान बेहद खुश है। यदि इसी प्रकार
की व्यवस्था अन्य राज भी करने लगें तो फिर किसान आन्दोलन की नौबत नहीं आने पायेगी।
मध्य प्रदेश के किसान
आन्दोलन का सबसे प्रमुख कारण राजनितिक हस्तछेप है। कोई भी किसान अपना गुस्सा प्रगट
करने के लिए छोटे मोटे आन्दोलन तो कर सकता है जैसे किसानो ने अपना कृषि उत्पाद
सड़कों पर बिखेरा। पर किसान कभी भी हिंसक आन्दोलन नहीं करता। जो असली किसान है वो
केवल कृषि पर ध्यान केन्द्रित करता है। यदि किस फसल से नुकसान होता चला जाता है तो
फिर वह दुसरे रास्ते तलासता है जैसे कोई नयी/ अन्य दूसरी फसल की खेती करना, पशुपाल
करना, सरकार द्वारा प्रोत्त्साहित की जाने वाली अन्य योजनाओं का लाभ उठाना इत्यादि
पर कभी हिंसक प्रदर्शन नहीं करता।
किसान का हिंसक प्रदर्शन केवल किसानो के तथाकथित
शुभचिंतक नेता अपना वोट बैंक की राजनीति और निजी स्वार्थ के लिए करवाते हैं। उसमे शामिल लोग कहने को
तो किसान होते हैं पर स्वयं एक जिम्मेदार शायद ही हों। उनका मकसद कुछ दूसरा होता है वो किसानो की
राजनीति करके स्वयं की राजनीति चमकाना चाहते हैं।
मध्य प्रदेश के किसान
आन्दोलन को कोई भी व्यक्ति साफ़ तौर पर राजनीति से प्रेरित समझ सकता है। किसानो ने
दूध को भी सड़कों पर फेंका। आखिर यह कौन मान सकता है कि आज दूध के दाम कम है और
किसान दूध उत्त्पादन में नुक्सान उठा रहा है ?
यदि तथाकथित किसान नेता इतने ही
किसानो के शुभ चिन्तक होते तो वह किसानो को उनके उत्त्पादों का बेहतर मूल्य
दिलवाने के लिए e NAAM जैसे पोर्टल के इस्तेमाल का लिए प्रोत्साहित करते और कृषि
उत्पाद की न्यूनतम समर्थन मूल्य के लिए मुख्य मंत्री और प्रधनमंत्री से मुलकात
करके किसानो के हितों की रछा के लिए
विमर्श करते। यह बात कतई स्वीकार नहीं की जा सकती कि यदि कोई मध्य प्रदेश के
मुख्यमंत्री, कृषि मंत्री और जरूरत पड़ने पर प्रधानमत्री से मिलता तो ये लोग इन किसान
नेताओं की बातों को नजरअंदाज करते। परन्तु
कुछ किसान नेताओं के माध्यम से कई अन्य नेताओं ने और खुद कई किसान नेताओं ने भी
जानबूझकर अपने निजी राजनितिक लाभ के लिए इस आन्दोलन को हवा दी और आज यह स्थिति
उत्त्पन्न हुई। इस आन्दोलन ने कई किसानो की जान ली इसके जिम्मेदार और इस घोर पाप के भागी भी किसानो को
भड़काने वाले तत्व ही है ।
सरकार की विफलता यह रही कि
वह उत्तर प्रदेश की तर्ज पर न्यूनतम समर्थन मूल्य पर कृषि उत्त्पादों की खरीद नहीं
कर सकी। इसके लिए उन्हें क्रय केन्द्रों की शक्ति से निगरानी करनी चाहिए थी। इसलिए
भविष्य के लिए भी यह आवश्यक है कि किसानो की फसलों की खरीद का न्यूनतम समर्थन
मूल्य पर क्रय सुनिश्चित हो और क्रय के पश्चात् सरकार खरीदी गयी फसलों के उत्पाद
का इमानदारी से संरछण करे ताकि भण्डारण में फसल उत्त्पादों का नुक्सान न हो। साथ
ही शरारती तत्वों और तथाकथित बदनीयती किसान नेताओं और इस प्रकार के अन्य नेताओं के
खिलाफ भी सख्त कार्यवाही की जाय जिससे उनके द्वारा जनजीवन अस्त व्यस्त करने की
उनकी मनसा कभी कामयाब न हो सके ।
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